विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्याययद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। यद्यपि लोभ से भ्रष्ट चित्त हुए ये लोग कुलनाश के दोष और मित्रद्रोह के पाप को नहीं देखते हैं, यह उनकी कमी है; फिर भी-
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्। हे जनार्दन! कुलनाश से होने वाले दोषों को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये? मैं ही पाप करता हूँ, ऐसी बात नहीं, आप भी भूल करने जा रहे हैं - श्रीकृष्ण पर भी आरोप लगाया। अभी वह समझ में अपने को श्रीकृष्ण से कम नहीं मानता। प्रत्येक नया साधक सद्गुरु की शरण जाने पर इसी प्रकार तर्क करता है और अपने को जानकारी में कम नहीं समझता। यही अर्जुन भी कहता है कि ये भले न समझें, किन्तु हम-आप तो समझदार हैं। कुल नाश के दोषों पर हमें विचार करना चाहिये। कुलनाश में दोष क्या है? |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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