विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायअब अर्जुन ने भली प्रकार समझ लिया कि ज्ञानमार्ग अच्छा लगे अथवा निष्काम कर्मयोग, दोनों दृष्टियों में कर्म करना ही है; फिर भी पाँचवें अध्याय में उसने प्रश्न किया कि फल की दृष्टि से कौन श्रेष्ठ है? कौन सुविधाजनक है? श्रीकृष्ण ने कहा-अर्जुन! दोनों ही परमश्रेय को देनेवाले हैं। एक ही स्थान पर दोनों पहुँचाते हैं, फिर भी सांख्य की अपेक्षा निष्काम कर्मयोग श्रेष्ठ है; क्योंकि निष्काम कर्म का आचरण किये बिना कोई सन्यासी नहीं हो सकता। दोनों में कर्म एक ही है। अतः स्पष्ट है कि वह निर्धारित कर्म किये बिना कोई सन्यासी नहीं हो सकता और न कोई योगी ही हो सकता है। केवल इस पर चलनेवाले पथिकों की दो दृष्टियाँ हैं, जो पीछे बतायी गयी हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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