विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायअध्याय तीन में अर्जुन ने प्रश्न किया-भगवन्! निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञान आपको श्रेष्ठ मान्य है, तो मुझे घोर कर्मों में क्यों लगाते हैं? अर्जुन को निष्काम कर्मयोग कठिन प्रतीत हुआ। इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि दोनों निष्ठाएँ मेरे द्वारा कही गयी हैं; किन्तु किसी भी पथ के अनुसार कर्म को त्यागकर चलने का विधान नहीं है। न तो ऐसा ही है कि कर्म को न आरम्भ करने से कोई परम नैष्कम्र्य की सिद्धि पा ले और न आरम्भ की हुई क्रिया को त्याग देने से कोई उस परमसिद्धि को पाता है। दोनों मार्गों में नियत कर्म यज्ञ की प्रक्रिया को करना ही होगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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