यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 286

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

पंचम अध्याय

इस अध्याय में स्पष्ट किया कि यज्ञ-तपों का भोक्ता, महापुरुषों के भी अन्दर रहनेवाली शक्ति महेश्वर है, अतः-

ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्यविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘यज्ञभोक्तामहापुरुषस्थमहेश्वरः’ नाम पन्चमोऽध्यायः।।5।।


इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में ‘यज्ञभोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर’ नामक पाँचवाँ अध्याय पूर्ण होता है।

इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘यज्ञभोक्तामहापुरुषस्थमहेश्वरः’ नाम पन्चमोऽध्यायः।।5।।


इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्दजी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘यज्ञभोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर’ नामक पाँचवाँ अध्याय पूर्ण होता है।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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