यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 277

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

पंचम अध्याय

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।22।।

केवल त्वचा ही नहीं, सभी इन्द्रियाँ स्पर्श करती हैं। देखना आँख का स्पर्श है, सुनना कान का स्पर्श है। इसी प्रकार इन्द्रियों और विषयों के संयोग से उत्पन्न होनेवाले सभी भोग यद्यपि भोगने में प्रिय प्रतीत होते हैं; किन्तु निःसन्देह वे सब दुःखयोनयः’-दुःखद योनियों के ही कारण हैं। वे भोग ही योनियों के कारण हैं। इतना ही नहीं, वे भोग पैदा होने और मिटनेवाले हैं, नाशवान् हैं। इसलिये कौन्तेय! विवेकी पुरुष उनमें नहीं फँसते। इन्द्रियों के इन स्पर्शों में रहता क्या है? काम और क्रोध, राग और द्वेष। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं-

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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