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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
चतुर्थ अध्याय
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।36।।
यदि तू सब पापियों से भी अधिक पाप करनेवाला है, तब भी ज्ञानरूपी नौका द्वारा सभी पापों से निःसन्देह भली प्रकार तर जायेगा। इसका आशय आप यह न लगा लें कि अधिक-से-अधिक पाप करके कभी भी तर जायेंगे। श्रीकृष्ण का आशय मात्र यही है कि कहीं आप भ्रम में न रहें कि ‘हम तो बड़े पापी हैं’, ‘हमसे पार नहीं लगेगा’- ऐसी कोई गुंजाइश न निकालें, इसलिये श्रीकृष्ण प्रोत्साहन और आश्वासन देते हैं कि सब पापियों के पापों के समूह से भी अधिक पाप करनेवाला हो, फिर भी तत्त्वदर्शियों से प्राप्त ज्ञानरूपी नौका द्वारा निःसन्देह सम्पूर्ण पापों को अच्छी प्रकार पार कर जायेगा। किस प्रकार?-
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