विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
दूसरे योगी ‘ब्रह्माग्नौ’-परब्रह्म परमात्मरूप अग्नि में यज्ञ के द्वारा ही यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं। श्रीकृष्ण ने आगे बताया-इस शरीर में अधियज्ञ मैं हूँ। यज्ञों का अधिष्ठाता अर्थात् यज्ञ जिसमें विलय होते हैं, वह पुरुष मैं हूँ। श्रीकृष्ण एक योगी थे, सद्गुरू थे। इस प्रकार दूसरे योगीजन ब्रह्मरूपी अग्नि में यज्ञ अर्थात् यज्ञस्वरूप सद्गुरु को उद्देश्य बनाकर यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, सारांशतः सद्गुरु के स्वरूप का ध्यान करते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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