यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 221

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

चतुर्थ अध्याय


ब्रह्मार्पणं ब्रह्मा हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्माणा हुतम्।
ब्रह्माव तेन गन्तव्यं ब्रह्माकर्मसमाधिना ॥24॥


ऐसे मुक्त पुरुष का समर्पण ब्रह्म है, हवि ब्रह्म है, अग्नि भी ब्रह्म ही है अर्थात् ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूपी कर्ता द्वारा जो हवन किया जाता है वह भी ब्रह्म है। ‘ब्रह्मकर्मसमाधिना’-जिसके कर्म ब्रह्म का स्पर्श करके समाधिस्थ हो चुके हैं, उसमें विलय हो चुके हैं, ऐसे महापुरुष के लिए जो प्राप्त होने योग्य है वह भी ब्रह्म ही है। वह करता-धरता कुछनहीं, केवल लोकसंग्रह के लिए कर्म में बरतता है।

यह तो प्राप्तिवाले महापुरुष के लक्षण हैं; किन्तु कर्म में प्रवेश लेनेवाले प्रारम्भिक साधक कौन-सा यज्ञ करते हैं?

पिछले अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! कर्म कर। कौन-सा कर्म? उन्होंने बताया, ‘नियतं कुरु कर्म’- निर्धारित किये हुए कर्म को कर। निर्धारित कर्म कौन-सा है? तो ‘यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।’ (3/9)- अर्जुन! यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है। इस यज्ञ के अतिरिक्त अन्यत्र जो कुछ किया जाता है, वह इसी लोक का बन्धन है न कि कर्म। कर्म तो संसार-बन्धन से मोक्ष दिलाता है। अतः ‘तदर्थं कर्म कौनतेय मुक्तसंगः समाचर।।’- उस यज्ञ की पूर्ति के लिये संगदोष से अलग रहकर भली प्रकार यज्ञ का आचरण कर। यहाँ योगेश्वर ने एक नवीन प्रश्न किया दिया कि वह यज्ञ है क्या जिसे करें और कर्म हससे पार लगे? उन्होंने कर्म की विशेषताओं पर बल दिया, बताया कि यज्ञ आया कहाँ से? यज्ञ देता क्या है? उसकी विशेषताओं का चित्रण किया; किन्तु अभी तक यह नहीं बताया कि यज्ञ है क्या?

अब यहाँ उसी यज्ञ को स्पष्ट करते हैं-



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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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