विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। अर्जुन! ‘चातुर्वण्र्यं मया सृष्टम्’-चार वर्णों की रचना मैंने की। तो क्या मनुष्यों को चार भागों में बाँट दिया? श्रीकृष्ण कहते हैं-नहीं, ‘गुणकर्मविभ्ज्ञागशः’-गुणों के माध्यम से कर्म को चार भागाों में बाँटा। गुण एक पैमाना है, मापदण्ड है। तामसी गुण होगा तो आलस्य, निद्रा, प्रमाद, कर्म में न प्रवृत्त होने का स्वभाव, जानते हुए भी अकर्तव्य से निवृत्ति न हो पाने की विवशता रहेगी। ऐसी अवस्था में साधन आरम्भ कैसे करें? |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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