यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 20

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

प्रथम अध्याय

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिनरणसमुद्यमे।।22।।

जब तक मैं इन स्थित हुंए युद्ध कामना वालों को अच्छी प्रकार देख न लूँ कि इस युद्ध के उद्योग में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है - इस युद्ध-व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना है।

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्रं समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।23।।

दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में कल्याण चाहने वाले जो-जो राजा लोग इस सेना में आये हैं, उन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा, इसलिये खड़ा करें। मोहरूपी दुर्योधन। मोहमयी प्रवृत्तियों का कल्याण चाहने वाले जो-जो राजा इस युद्ध में आये हैं, उनको मैं देख लूँ।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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