|
यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
चतुर्थ अध्याय
संक्षेप में, श्रीकृष्ण कहते हैं- साध्य वस्तु दिलाने वाले विवेक, वैराग्य इत्यादि को निर्विघ्न प्रवाहित करने के लिये तथा दूषण के कारक काम-क्रोध, राग-द्वेष इत्यादि का पूर्ण विनाश करने के लिये, परमधर्म परमात्मा में स्थिर रखने के लिये मैं युग-युग में अर्थात् हर परिस्थिति, हर श्रेणी में प्रकट होता हूँ-बशर्ते कि ग्लानि हो। जब तक इष्ट समर्थन न दें, तब तक आप समझ ही नहीं सकेंगे कि विकारों का विनाश हुआ अथवा अभी कितना शेष है? प्रवेश से पराकाष्ठापर्यन्त इष्ट हर श्रेणी में हर योग्यता के साथ रहता हैं। उनका प्राकट्य अनुरागी के हृदय में होता है। भगवान प्रकट होते हैं, तब तो सभी दर्शन करते होंगे? श्रीकृष्ण कहते हैं-नहीं,
|
|