विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
श्रीकृष्ण कहते हैं-नहीं, नियत कर्म। नियत कर्म क्या है? वह है यज्ञ की प्रक्रिया, जिसमें होता है श्वास में प्रश्वास का हवन, प्र्रश्वान में श्वास का हवन, इन्द्रिय-सयंम इत्यादि, जिसका शुद्ध अर्थ है योग-साधना, आराधना आराध्य देव तक पहुँचानेवाली विधि-विशेष ही आराधना है। इस आराधना कर्म को ही चार श्रेणियों में बाँटा गया। जैसी क्षमतावाला पुरुष हो, उसे उसी श्रेणी से प्रारम्भ करना चाहिये। यही सबका अपना-अपना स्वधर्म है। यदि वह आगेवालों की नकल करेगा तो भय को प्राप्त होगा। सर्वथा नष्ट तो नहीं होगा क्योंकि इसमें बीज का नाश नहीं होता; हाँ, वह प्रकृति के दबाव से भयाक्रान्त, दीन-हीन अवश्य हो जायेगा। शिशिु कशा का विद्यार्थी स्नातक कक्षा में बैठने लगे तो स्नातक क्या बनेगा, वह प्रारम्भिक वर्णमाला से भी वंचित रह जायेगा। अर्जुन प्रश्न रखता है कि मनुष्य स्वर्ध का आचरण क्यों नहीं कर पाता?-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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