विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायद्रुपदौ द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते। अचल पददायक द्रुपद और ध्यान रूपी द्रौपदी के पाँचों पुत्र - सहृदयता, वात्सल्य, लावण्य, सौम्यता, स्थिरता इत्यादि साधन में महान् सहायक महारथी हैं तथा बड़ी भुजा वाला अभिमन्यु- इन सबने पृथक्-पृथक् शंख बजाये। भुजा कार्य-क्षेत्र का प्रतीक है। जब मन भय से रहित हो जाता है तो उसकी पहुँच दूर तक हो जाती है। हे राजन्! इन सबने अलग-अलग शंख बजाये। कुछ-न-कुछ दूरी सभी तय कराते हैं। इनका पालन आवश्यक है, इसलिये इनके नाम गिनाये। इसके अतिरिक्त कुछ दूरी ऐसी भी है जो मन-बुद्धि से परे है, भगवान स्वयं ही अन्तःकरण में विराजकर तय कराते हैं। इधर दृष्टि बनकर आत्मा से खड़े हो जाते हैं और सामने स्वयं खड़े होकर अपना परिचय करा लेते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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