विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। आरम्भ से पूर्तिपर्यन्त कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं फिर भी अहंकार से विशेष मूढ़ पुरुष ‘मैं कर्ता हूँ-ऐसा मान लेता है। यह कैसे माना जाय कि आराधना प्रकृति के गुणों द्वारा होती है? ऐसा किसने देखा? इस पर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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