विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
स्त्रियों का सतीत्व एवं नस्ल की शुद्धता एक सामाजिक व्यवस्था है, अधिकारों का प्रश्न है, समाज के लिये उसकी उपयोगिता भी है; किन्तु माता-पिता की भूलों का सन्तान की साधना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ‘आपन करनी पार उतरनी।’ हनुमान, व्यास, वशिष्ठ, नारद, शुकदेव, कबीर, ईसा इत्यादि अच्छे महापुरुष हुए, जबकि सामाजिक कुलीनता से इनका सम्पर्क नहीं है। आत्मा अपने पूर्वजन्म के गुणधर्म लेकर आता है। श्रीकृष्ण कहते हैं-‘मन षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।’ (15/7)-मनसहित इन्द्रियों से जो कार्य इस जन्म में होता है, उनके संस्कार लेकर जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर नवीन शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसमें जन्मदाताओं का क्या लगा? उनके विकास में कोई अन्तर नहीं आया।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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