विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
परमात्मा में स्थिति के अनन्तर इस आत्मा को शरीरों की यात्रा नहीं करनी पड़ती अर्थात् शरीर-त्याग और शरीर-धारण वाला क्रम समाप्त हो जाता है। अतः कर्म कोई ऐसी वस्तु है कि इस पुरुष को पुनः शरीरों की यात्रा नहीं करनी पड़ती। ‘मोक्ष्यसेऽशुभात्’[1] -अर्जुन! इस कर्म को करके तू संसार-बन्धन ‘अशुभ’ से छूट जायेगा। कर्म कोई ऐसी वस्तु है जो संसार-बन्धन से मुक्ति दिलाती है। अब प्रश्न खड़ा होता है कि वह निर्धारित कर्म है क्या? इस पर कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता, 4/16
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