विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। अर्जुन! तू निर्धारित किये हुए कर्म को कर। अर्थात् कर्म तो बहुत से हैं, उनमें से कोई एक चुना हुआ है; उसी नियत कर्म को कर। कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ है। इसलिये कि करते रहोगे, थोड़ी भी दूरी तय कर लोगे तो जैसा पीछे बता आये हैं- महान् जन्म-मरण के भय से उद्वार करनेवाला है, इसलिये श्रेष्ठ है। कर्म न करने से तेरी शरीर-यात्रा भी सिद्ध नहीं होगी। शरीर-यात्रा का अर्थ लोग कहते हैं-‘शरीर-निर्वाह’। कैसा शरीर-निर्वाह? क्या आप शरीर है? |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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