विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
अर्जुन उवाच जनों पर दया करने वाले जनार्दन! यदि निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानयोग आपको श्रेष्ठ मान्य है, तो हे केशव! आप मुझे भयंकर कर्मयोग में क्यों लगते हैं? निष्काम कर्मयोग में अर्जुन को भयंकरता दिखायी पड़ी; क्योंकि इसमें कर्म करने में ही अधिकार है, फली में कभी नहीं। कर्म करने में अश्रद्धा भी न हो और निरन्तर समर्पण के साथ योग पर दृष्टि रखते हुए कर्म लगा रह। जबकि ज्ञानमार्ग में हारोगे तो देवत्व है, जीतने पर महामहिम स्थिति है। अपनी लाभ-हानि स्वयं देखते हुए आगे बढ़ना है। इस प्रकार अर्जुन को निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग सरल प्रतीत हुआ। इसलिये उसने निवेदन किया- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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