विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्याय
तस्य स´जनयन्हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः। इस प्रकार अपने बलाबल का निर्णय लेकर शंख ध्वनि हुई। शंख ध्वनि पात्रों के पराक्रम की घोषणा है कि जीतने पर कौन-सा पात्र आपको क्या देगा? कौरवों में वृद्ध प्रतापवान् पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर में सिंहनाद के समान भयप्रद शंख बजाया। सिंह प्रकृति के भयावह पहलू का प्रतीक है। घोर जंगल के नीरव एकान्त में शेरकी दहाड़ कान में पड़ जाय तो रोंगटे खड़े हो जायेंगे, हृदय काँपने लगेगा, यद्यपि शेर आपसे मीलों दूर है। भय प्रकृति में होता है, परमात्मा में नहीं; वह तो अभय सत्ता है। भ्रम रूपी भीष्म यदि विजयी होता है तो प्रकृति के जिस भयारण्य में आप हैं उससे भी अधिक भय के आवरण में बाँध देगा। भय की एक परत और बढ़ जायेगी, भय का आवरण घना हो उठेगा। यह भ्रम इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं दे सकेगा। अतः प्रकृति से निवृत्ति ही गन्तव्य का मार्ग है। संसार में प्रवृत्ति तो भवाटवी है, घोर अन्धकार की छाया है। इसके आगे कौरवों की कोई घोषणा नहीं है। कौरवों की ओर से कई बाजे एक साथ बजे; किन्तु कुल मिलाकर वे भी भय ही प्रदान करते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। प्रत्येक विकार कुछ-न-कुछ भय तो देता ही है, इसलिये उन्होंने भी घोषणा की- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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