विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। सम्पूर्ण भूतप्राणियों के लिये वह परमात्मा रात्रि के तुल्य है क्योंकि दिखायी नहीं देता, न विचार ही काम करता है इसलिये रात्रि सदृश है। उस रात्रि में परमात्मा में संयमी पुरुष भली प्रकार देखता है, चलता है, जागता है; क्योंकि वहाँ उसकी पकड़ है। योगी इन्द्रियों के संयम द्वारा उसमें प्रवेश पा जाता है। जिन नाशवान् सांसारिक सुख-भोग के लिये सम्पूर्ण प्राणी रात-दिन परिश्रम करते हैं, योगी के लिये वही निशा है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 2/323/8
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