विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनु विधीयते। जल में नाव को जिस प्रकार वायु हरण करके गन्तव्य से दूर कर देती है, ठीक वैसे ही विषयों में विचरण करती हुई इन्द्रियों में जिस इन्द्रिय के साथ मन रहत है, वह एक ही इन्द्रिय उस अयुक्त पुरुष की बुद्धि को हर लेती है। अतः योग का आचरण अनिवार्य है। क्रियात्मक आचरण पर श्रीकृष्ण पुनः बल देते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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