विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते। भगवान के पूर्ण कृपा-प्रसाद ‘भगवत्ता’ से संयुक्त होने पर उसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है, ‘दुःखालयम् अशाश्वतम्’।[1] संसार का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्त वाले पुरुष की बुद्धि शीघ्र ही अच्छी प्रकार स्थिर हो जाती है। किन्तु जो योगयुक्त नहीं है, उसकी दशा पर प्रकाश डालते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता, 8/95
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