विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। इन्द्रियों द्वारा विषयों को न ग्रहण करनेवाले पुरुषों के विषय तो निवृत्त हो जाते हैं क्योंकि वे ग्रहण ही नहीं करते; किन्तु उनका राग निवृत्त नहीं होता, आसक्ति लगी रहती है। सम्पूर्ण इन्द्रियों को विषयों से समेटनेवाले निष्कामकर्मी का राग भी ‘परं दृष्ट्वा’-परमतत्त्व परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाता है। महापुरुष कछुए की तरह अपनी इन्द्रियों को विषयों में नहीं फैलाता। एक बार जब इन्द्रियाँ सिमट गयीं तो संस्कार ही मिट जाते हैं, पुनः वे नहीं निकलते। निष्काम कर्मयोग के आचरण द्वारा परमात्मा के प्रत्यक्ष दर्शन के साथ उस पुरुष का विषयों से राग भी निवृत्त हो जात है। प्रायः चिन्तन पथ में हठ करते हैं। हठ इन्द्रियों को रोककर वे विषय से तो निवृत्त हो जाते हैं किन्तु मन में उनका चिन्तन, राग लगा रहता है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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