विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायश्रीभगवानुवाच पार्थ! जब मनुष्य मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग देता है, तब वह आत्मा में ही सन्तुष्ट हुआ स्थिरबुद्धि वाला कहा जाता है। कामनाओं के त्याग पर ही आत्मा का दिग्दर्शन होता है। ऐसा आत्माराम, आत्मतृप्त महापुरुष ही स्थितप्रज्ञ है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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