मौसल युद्ध में मरे यादवों का अंत्येष्टि संस्कार

महाभारत मौसल पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय में वैशम्पायन जी ने अर्जुन द्वारा द्वारका में वसुदेव जी और मौसल युद्ध में मरे यादवों का अंत्येष्टि संस्कार करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अर्जुन द्वारा वसुदेव जी तथा मौसल युद्ध में मरे यादवों का अंत्येष्टि संस्कार

वैशम्पायन जी कहते हैं- परंतप! अपने मामा वसुदेव जी के ऐसा कहने पर अर्जुन मन-ही मन बहुत दुखी हुए। उनका मुख मलिन हो गया। वे वासुदेव जी से इस प्रकार बोले- 'मामा जी! वृष्णि वंश के प्रमुख वीर भगवान श्रीकृष्‍ण तथा अपने भाइयों से हीन हुई यह पृथ्‍वी मुझसे अब किसी तरह देखी नही जा सकेगी। राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, पाण्‍डव सहदेव, नकुल, द्रौपदी तथा मैं– ये छ: व्‍यक्ति एक ही हृदय रखते हैं। (इनमें से कोई भी अब यहाँ नहीं रहना चाहेगा)। राजा युधिष्ठिर के भी परलोक-गमन का समय निश्चय ही आ गया है। कालों में श्रेष्ठ मामा जी! यह वही काल प्राप्‍त हुआ है। ऐसा समझें। शत्रुदमन! अब मैं वृष्णि वंश की स्त्रियों, बालकों और बूढ़ों को अपने साथ ले जाकर इन्द्रप्रस्थ पहुँचाऊँगा'। मामा से यों कहकर अर्जुन ने दारुक से कहा- अब मैं वृष्णिवंशी वीरोंके मन्त्रियों से से शीघ्र मिलना चाहता हूँ। ऐसा कहकर शुरवीर अर्जुन यादव महारथियों के लिये शोक करते हुए यादवों की सुधर्मा नामक सभा में प्रविष्ट हुए। वहाँ एक सिंहासन पर बैठे हुए अर्जुन के पास मन्त्री आदि समस्‍त प्रकृति वर्ग के लोग तथा वेदवेता ब्राह्मण आये और उन्‍हें सब ओर से घेरकर पास ही बैठ गये। उन सब के मन में दीनता छा गयी थी। सभी किं कर्तव्‍य विमुढ़ एवं अचेत हो रहे थे। अर्जुन की दशा तो उनसे भी अधिक दयनीय थी। वे उन सभासदों से समयोचित वचन बोले- मन्त्रियों! मैं वृष्णि और अन्धक वंश में लोगों को अपने साथ इन्‍द्रप्रस्‍थ ले जाऊँगा; क्‍योंकि समुद्र अब इस सारे नगर को डूबो देगा; अत: तुम लोग तरह-तरह के वाहन और रत्‍न लेकर तैयार हो जाओ और इन्‍द्रप्रस्‍थ में चलने पर ये श्रीकृष्‍ण-पौत्र वज्र तुम लोगों के राजा बनाये जायंगें। आज के सातवें दिन निर्मल सूर्योदय होते ही हम सब लोग इस नगर से बाहर हो जायेंगे।

इसलिये सब लोग शीघ्र तैयार हो जाओ, विलम्‍ब न करो। अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन के इस प्रकार आज्ञा देने पर समस्‍त मन्त्रियों ने अपनी अभीष्‍ट-सिद्धि के लिये अत्‍यन्‍त उत्‍सुक होकर शीघ्र ही तैयारी आरम्‍भ कर दी। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्‍ण के महल में ही उस रात को निवास किया। वे वहाँ पहुँचते ही सहसा महान शोक और मोह में डूब गये। सबेरा होते ही महातेजस्‍वी शूरनन्‍दन प्रतापी वसुदेव जी ने अपने चित्त को परमात्मा में लगाकर योग के द्वारा उत्तम गति प्राप्‍त की। फिर तो वसुदेव जी के महल में बड़ा भारी कोहराम मचा। रोती चिल्लाती हुई स्त्रियों का आर्तनाद बड़ा भयंकर प्रतीत होता था। उन सब के बाल खुले हुए थे। उन्‍होंने आभूषण और मालाएं तोड़कर फेंक दी थीं और वे सारी स्त्रियां अपने हाथों से छाती पीटती हुई करुणाजनक विलाप कर रही थीं। युवतियों में श्रेष्ठ देवकी, भद्रा, रोहिणी तथा मदिरा- ये सब-की-सब अपने पति के साथ चिता पर आरूढ़ होने को उद्यत हो गयीं।[1] भारत! तदनन्‍तर अर्जुन ने एक बहुमूल्‍य विमान सजाकर उस पर वसुदेव जी के शव को सुलाया और मनुष्‍यों के कंधों पर उठवाकर वे उसे नगर से बाहर ले गये। उस समय समस्‍त द्वारकावासी तथा आनर्त जनपद के लोग जो यादवों के हितैषी थे, वहाँ दु:ख-शोक में मग्‍न होकर वसुदेव जी के शव के पीछे-पीछे गये।

उनकी अर्थी के आगे-आगे अश्वमेध यज्ञ में उपयोग किया हुआ छत्र तथा अग्निहोत्र की प्रज्‍वलित अग्नि लिये याजक ब्राह्मण चल रहे थे। वीर वसुदेव जी की पत्नियां वस्‍त्र और आभूषणों से सज-धजकर हज़ारों पुत्रवधुओं तथा अन्‍य स्त्रियों के साथ अपने पति की अर्थी के पीछे-पीछे जा रही थीं। महात्‍मा वसुदेव जी को अपने जीवन काल में जो स्‍थान विशेष प्रिय था, वहीं ले जाकर अर्जुन आदि ने उनका पितृमेध कर्म (दाह-संस्‍कार) किया। चिता की प्रज्‍वलित अग्नि में सोये हुए वीर शूरपुत्र वसुदेव जी के साथ उनकी पूर्वोक्‍त चारों पत्नियां भी चिता पर जा बैठीं और उन्‍हीं के साथ भस्‍म हो पतिलोक को प्राप्‍त हुईं। चारों पत्नियों से संयुक्‍त हुए वसुदेव जी के शव का पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन ने चन्‍दन की लकड़ियों तथा नाना प्रकार के सुगन्धित पदार्थों द्वारा दाह किया। उस समय प्रज्‍वलित अग्नि चट-चट शब्‍द, सामगान करने वाले ब्राह्मणों के वेद मन्‍त्रोंच्‍चारण का गम्‍भीर घोष तथा रोते हुए मनुष्‍यों का आर्तनाद एक साथ ही प्रकट हुआ। इसके बाद वज्र आदि वृष्णि और अन्धक वंश के कुमारों तथा स्त्रियों ने महात्‍मा वसुदेव जी को जलांजलि दी। भरतश्रेष्‍ठ! अर्जुन ने कभी धर्म का लोप नहीं किया था। वह धर्मकृत्‍य पूर्ण कराकर अर्जुन उस स्‍थान पर गये जहाँ वृष्णियों का संहार हुआ था। उस भीषण मारकाट में मरकर धराशायी हुए यादवों को देखकर कुरुकुल नन्‍दन अर्जुन को बड़ा भारी दु:ख हुआ। उन्‍होंने ब्रह्मशाप के कारण एरका से उत्‍पन्‍न हुए मूसलों द्वारा मारे गये यदुवंशी वीरों के बड़े छोटे के क्रम से सारे समयोचित कार्य (अन्‍त्‍येष्टि कर्म) सम्‍पन्‍न किये। तदनन्‍तर विश्वस्‍त पुरुषों द्वारा बलराम तथा वसुदेवनन्‍दन श्रीकृष्‍ण दोनों के शरीरों की खोज कराकर अर्जुन ने उनका भी दाह संस्‍कार किया।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत मौसल पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-18
  2. महाभारत मौसल पर्व अध्याय 7 श्लोक 19-40

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