मोहन हौं तुम ऊपर वारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट



मोहन हौं तुम ऊपर वारी।
कंठ लगाइ लिए, मुख चूमति, सुंदर स्‍याम बिहारी।
काहे कौं ऊखल सौं बाँध्‍यौ, कैसी मैं महतारी।
अहिहि उतंग वयारि ना लागत, क्‍यौं टूटे तरु भारी।
बारंबार बिचारति जसुमति, यह लीला अवतारी।
सूरदास स्‍वामी की महिमा कापै जाति बिचारी।।388।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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