मीराँबाई की पदावली
अविनाशी प्रियतम
राग धानी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसका पाठ इस प्रकार भी मिलता है:-
सखी री मैं तो गिरधर के रँग राती।
पचरँग मेरा चोला रँगा दे मैं झुरंमुट खेलन जाती।
झुरमुट में मेरा साई मिलेगा, खोल अडम्बर गाती।
चंदा जायगा सुरज जायगा, जायगा धरण अकासी।
पवन पाणी दोनों हीं जाँयगे, अटल रहे अबिनासी।
सुरत निरत का दिवला सँजोले, मनसा की कर बाती।
प्रेमहटी का तेल बनाले, जगा करे दिन राती।
जिनके पिय परदेस बसत हैं, लिखि लिखि भेजैं पाती।
मेरे पिय मो माहिं बसत है, कहूँ न आती जाती।
पीहर बसूँ न बसूँ सास, घर सतगुर शब्द सँगाती।
ना घरा मेरा न घर तेरा, मीराँ हरि रँग राती॥ - ↑ रँगराती = प्रेम में रंगी व मग्न। सहियाँ = सैयाँ, सखियों। पचरंग = पाँच वा विविध रंगों का बना अथवा पंचतत्त्वों द्वारा निर्मित। चोला = लंबा वा ढीला ढाला फकीरों जैसा कुर्ता अथवा शरीर। झिरमिट = झुरमुट मारने का खेल जिसमें सारा शरीर इस प्रकार ढक लिया जाता है कि कोई जल्दी पहचान न सके अथवा कर्मानुसार प्राप्त जीवात्मा की योनि का शरीरावरण धारण। ओह...माँ = उसी वेष में, उसी अवसर पर। साँवरो = श्यामसुन्दर प्रियतम। गाती = शरीर पर व गले से बँधी हुई चादर अथवा मनोराज द्वारा निर्मित काल्पनिक आवरण। खोल मिलीं = दूर कर वा हटाकर गले लग गई अथवा तन्मय हो गई। ( देखो - ‘कदरे मिलउली सज्जना, कस कंचूकी छोडि़, ढोला मारूरा दूहा )। हीय = हृदय में ही। चंदा...अविनासी = सूर्य चन्द्र, पृथ्वी, आकाश अथवा जल व वायु से सभी नश्वर वस्तुएँ हैं, केवल मेरा प्रियतम परमात्मा ही अविनाशी है। सुरत = परमात्मा की स्मृति। निरत = निरति अर्थात् विषय आदि से विरक्ति। दियला संजोले = दिया सजा ले, तय्यार कर ले। मनसा = मन। हटि = हाट, बाज़ार। जगरह्या = जल रहा है। दिन ते राती = दिन से रात तक, दिन रात बराबर। मिलिया = मिले। सांस = संशय, भ्रम का दुःख। भाग्या = दूर हो गया। सैन = संज्ञा, संकेत, रहस्य।
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