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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
4. मानव शरीर का सदुपयोग
निष्काम भाव होने से मनुष्य में राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि द्वंदों का नाश हो जाता है और समता आ जाती है। समता आने से योग हो जाता है; क्योंकि योग नाम समता का ही है- ‘समत्वं योग उच्यते’[1] निष्कामभाव आने से चेतनता की मुख्यता और जड़ता की गौणता हो जाती है। मनुष्य में जितना-जितना निष्काम भाव आता है, उतना-उतना वह संसार से ऊँचा उठता है और जितना-जितना सकाम भाव आता है, उतना-उतना वह संसार में बँधता है। गीता में आया है- इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 2। 48 ।
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