मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 25

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

4. मानव शरीर का सदुपयोग

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निष्काम भाव होने से मनुष्य में राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि द्वंदों का नाश हो जाता है और समता आ जाती है। समता आने से योग हो जाता है; क्योंकि योग नाम समता का ही है- ‘समत्वं योग उच्यते’[1] निष्कामभाव आने से चेतनता की मुख्यता और जड़ता की गौणता हो जाती है। मनुष्य में जितना-जितना निष्काम भाव आता है, उतना-उतना वह संसार से ऊँचा उठता है और जितना-जितना सकाम भाव आता है, उतना-उतना वह संसार में बँधता है। गीता में आया है-

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्माणि ते स्थिताः ।।(गीता 5। 19)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 2। 48 ।

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