मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 110

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

प्रार्थना

Prev.png

हे नाथ! बिना आपके कौन सुनने वाला है? कोई जानने वाला भी नहीं है! हनुमान् जी विभीषण से कहते हैं कि मैं चंचल वानरकुल में पैदा हुआ हूँ। प्रातःकाल जो हम लोगों का नाम भी ले ले तो उस दिन उसको भोजन न मिले! ऐसा अधम होने पर भी भगवान् ने मेरे पर कृपा की[1], फिर तुम तो पवित्र ब्राह्मण कुल में पैदा हुए हो! कानों से ऐसी महिमा सुनकर ही विभीषण आपकी शरण में आये और बोले-

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर। त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।।[2]

जो आपकी शरण में आ जाता है, उसकी आप रक्षा करते हो, उसको सुख देते हो, यह आपका स्वभाव है- ऐसो को उदार जग माहीं। बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाहीं।।[3] हरेक दरबार में दीन का आदर नहीं होता। जब तक हमारे पास कुछ धन-सम्पत्ति है, कुछ गुण है, कुछ योग्यता है तभी तक दुनिया हमारा आदर करती है। दुनिया तो हमारे गुणों का आदर करती है, हमारा खुद का (स्वरूप का) नहीं। परन्तु आप हमारा खुद का आदर करते हो, हमें अपना अंश मानते हो-‘ममैवांशो जीवलोके’ [4], ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए’ [5]। हमें अपना अंश मानते ही नहीं, स्पष्टतया जानते हो और अपना जानकर कृपा करते हो। हमारे अवगुणों की तरफ आप देखते ही नहीं। बच्चा कैसा ही हो, कुछ भी करे, पर ‘अपना है’- यह जानकर माँ कृपा करती है, नहीं तो मुफ्त में कौन आफत मोल ले महाराज?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।। प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।। (मानस, सुन्दर0 7)
  2. (मानस, सुन्दर0 45)
  3. (विनयपत्रिका 162)
  4. गीता 15/7
  5. मानस, उत्तर0 86/2

संबंधित लेख

मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः