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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
प्रार्थना
हे नाथ! अब तो आपको हमारे पर कृपा करनी ही पड़ेगी। हम भले-बुरे कैसे ही हों, आपके ही बालक हैं। आपको छोड़कर हम कहाँ जायँ? किससे बोलें? हमारी कौन सुने? संसार तो सफा जंगल है। उससे कहना अरण्यरोदन (जंगल में रोना) है। आपके सिवाय कोई सुनने वाला नहीं है। महाराज! हम किससे कहें? हमारे पर किसको दया आती है? अच्छे-अच्छे लक्षण हों तो दूसरा भी कोई सुन ले। हमारे- जैसे दोषी, अवगुणी की बात कौन सुने? कौन अपने पास रखे? हे गोविन्द-गोपाल! यह तो आप ही हैं, जो गायों और बैलों को भी अपने पास रखते हैं, चारा देते हैं। हम तो बस, बैलों की तरह ही हैं! बिलकुल जंगली आदमी है! आप ही हमें निभाओगे। और कौन है, किसकी हिम्मत है कि हमें अपना ले? ऐसी शक्ति भी किसमें है? हमें रोटी दे, कपड़ा दे, मकान दे, खर्चा करे, और हमारे से क्या मतलब सिद्ध होगा? ऐसे निकम्मे आदमी को कौन सँभाले? कोई गुण-लक्षण हों तो सभाँले। यह तो आप दया करते हैं, तभी काम चलता है, नहीं तो कौन परवार करता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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