मेरे इन नैननि इते करे।
मोहन बदन चकोर चंद ज्यौ, इकटक तै न टरे।।
प्रमुदित मनि अवलोकि उरग ज्यौ, अति आनंद भरे।
निधिहिं पाइ इतराइ नीच ज्यौं, त्यौ हमकौ निदरे।।
जौ अटके गोचर घूँघट पट, सिसु ज्यौ अरनि अरे।
धरे न धीर निमेष रुदनबल, सौ हठ करनि परे।।
रही ताडि, खिझि लाज लकुट ले, एकहु डर न डरे।
'सूरदास' गथ खोटौ, काहै पारखि दोष धरे।।2340।।