मेरी इस विनीत विनती को -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग भैरवी - तीन ताल


मेरी इस विनीत विनती को सुन लो, हे व्रजराजकुमार!
युग-युग, जन्म-जन्म में मेरे तुम ही बनो जीवनाधार॥
पद-पंकज-पराग की मैं नित अलिनी बनी रहूँ, नँदलाल!
लिपटी रहूँ सदा तुमसे मैं कनकलता ज्यों तरुण तमाल॥
दासी मैं हो चुकी सदा को अर्पणकर चरणों में प्राण।
प्रेम-दाम से बँध चरणों में, प्राण हो गये धन्य महान॥
देख लिया त्रिभुवन में बिना तुम्हारे और कौन मेरा।
कौन पूछता है ‘राधा’ कह, किस को राधा ने हेरा॥
इस कुल, उस कुल-दोनों कुल, गोकुल में मेरा अपना कौन!
अरुण मृदुल पद-कमलों की ले शरण अनन्य गयी हो मौन॥
देखे बिना तुम्हें पलभर भी मुझे नहीं पड़ता है चैन।
तुम ही प्राणनाथ नित मेरे, किसे सुनाऊँ मनके बैन॥
रूप-शील-गुण-हीन समझकर कितना ही दुतकारो तुम।
चरणधूलि मैं, चरणों में ही लगी रहूँगी बस, हरदम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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