मेरा तन-मन सब तेरा ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग शिवञ्जनी - तीन ताल


मेरा तन-मन सब तेरा ही, तू ही सदा स्वामिनी एक।
अन्योंका उपभोग्य न भोक्ता है कदापि, यह सच्ची टेक॥
तन समीप रहता न स्थूलतः, पर जो मेरा सूक्ष्म शरीर।
क्षणभर भी न विलग रह पाता, हो उठता अत्यन्त अधीर॥
रहता सदा जुड़ा तुझसे ही, अतः बसा तेरे पद-प्रान्त।
तू ही उसकी एकमात्र जीवन की जीवन है निर्भ्रान्त॥
हु‌आ न होगा अन्य किसी का उस पर कभी तनिक अधिकार।
नहीं किसी को सुख देगा, लेगा न किसी से किसी प्रकार॥
यदि वह कभी किसीसे किंचित्‌‌ दिखता करता-पाता प्यार।
वह सब तेरे ही रसका बस, है केवल पवित्र विस्तार॥
कह सकती तू मुझे सभी कुछ, मैं तो नित तेरे आधीन।
पर न मानना कभी अन्यथा, कभी न कहना निज को दीन॥
इतने पर भी मैं तेरे मन की न कभी हूँ कर पाता।
अतः बना रहता हूँ संतत तुझको दुख का ही दाता॥
अपनी ओर देख तू मेरे सब अपराधों को जा भूल।
करती रह कृतार्थ मुझको वे पावन पद-पंकज की धूल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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