मेघ दल-प्रबल ब्रज-लोग देखैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड़ मलार


मेघ दल-प्रबल ब्रज-लोग देखैं।
चकित जहँ-तहँ भए, निरखि बादर नए, ग्वाल गोपाल डरि गगन पेखैं।।
ऐसे बादर सजल, करत अति महाबल, चलत घहरात करि अंधकाला।
चकित भए नंद, सब महर चकित भए, चकित भए नर-नारि हरि करत ख्याला।।
घटा घनघोर घहरात, अररात, दररात, थररात ब्रज लोग डरपे।
तडित आघात तररात, उतपात सुनि, नारि-नर सकुचि तन प्रान अरपे।।
कहा चाहत होन, भई कबहूँ जौ न, कबहूँ आँगन भौन बिकल डोलैं।
मेटि पूजा इंद्र, नंद-सुत गोबिंद, सूर-प्रभु आनँद करि कलोलैं।।855।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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