मेघ चले मुख फेरि अमरपुर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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मेघ चले मुख फेरि अमरपुर। करी पुकार जाइ आगै सुर।।
स्रम तैं टूटि गए सब के उर। जल बिनु भए सबै घन धूँधुर।।
की मारौ की सरन उबारौ। हम मैं कहा रह्यौ अब गारौ।।
जहँ-तहँ बादर रोवत बोलैं। स्रम अपनौ प्रभु आगै खोलैं।।
सात दिवस नहिं मिटी लगारा। वरष्यौ सलिल अखंडित धारा।।
महा प्रलय-जल नैकु न उबरयौ। ब्रजबासिनि नीकैं अब निदरयौ।।
वैसोइ गिरि वैसेइ ब्रजबासी। नैंकु बूँद नहिं धरनि प्रकासी।।
सूर सुनत सुरपतिहि उदासी। देख्यौ यौं आए जल-रासी।।942।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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