मेघनाद ब्रह्मा-बर पायो -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
मेघनाद ब्रह्मा-बर पायो।
आहुति अगिनि जिवाइ सँतोषी निकस्यौ रथ वहु रतन बनयौ।
आयुध धरैं समस्त कवच सजि, गरजि चढ़यौ रन-भूमिहिं आयौ।
मनौ मेघनायक रितु पावस, बान-वृष्टि करि सैन कँपायौ।
कीन्हौं कोप कुँवर कौसलपति, पंथ अकास सायकनि छायौ।
हँसि-हँसि नाग फाँस सर साँघत, बंधु-समेत बँधायौ।
नारद-स्वामी कह्यौ निकट ह्वै, गरुड़ासन काहैं विसरायौ?
भयौ तोष दसरथ के सुत कौं, सुनि नारद कौ ज्ञान लखायौ।
सुनिरन ध्यान जानि कै अपनै, नाग-फाँस तैं सेन छुड़ायौ।
सूर बिमान चढ़े सुरपुर सौं, आनँद अभय-निसान बजायौ॥141॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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