मृत्यु (महाभारत संदर्भ) 2

  • अनिष्टं सर्वभूतानां मरणं नाम।[1]

मरना किसी भी प्राणी को अच्छा नहीं लगता।

  • न कश्चिज्जात्वतिक्रामेज्जरामृत्यु हि मानाव:।[2]

कोई भी मनुष्य कभी भी मृत्यु और वृद्धावस्था को नहीं जीत सकता।

  • जातमेवांतकोऽन्ताय जरा चांवेति देहिनम्।[3]

देहधारी के जन्म के साथ ही मृत्यु और वृद्धावस्था पीछे लग जाती हैं।

  • उत्तिष्ठते यथाकालं मृत्युर्बलवतामपि।[4]

समय आने पर बलवानों की मौत भी आ ही जाती है।

  • विषयाश्लिष्टं जरामृत्यु न विंदते।[5]

विषयों में जो नहीं फसा है उसके पास बुढ़ापा और मृत्यु नहीं आते।

  • न हि प्रतिक्षते मृत्यु: कृतं वास्य न वा कृतम्।[6]

मृत्यु इस बात की प्रतीक्षा नहीं करती कि इसका काम पूरा हुआ या नहीं।

  • को हि जानाति कस्याद्य मृत्युकालो भविष्यति।[7]

कौन जानता है कि आज कौन मरने वाला है।

  • सुप्तं व्यार्घं महोघो वा मृत्युरादाय गच्छति।[8]

मृत्यु ऐसे ही लेकर चल देती है जैसे सोये हुये बाघ को महान् जल प्रवाह

  • मरणं जन्मनि प्रोक्तं जन्म वै मरणाश्रितम्।[9]

जन्म में मृत्यु आश्रित है और मृत्यु में जन्म निहित (छिप) है।

  • जन्ममृत्युमहाग्राहे न कश्चिदभिपद्यते।[10]

जन्म-मरण के दु:ख के समय में कोई ऋजु के पास नहीं आता है।

  • मृत्युकाले हि भूतानां सद्यो जायते वेपथु:।[11]

मरने के समय प्राणियों का शरीर तुरंत काँपने लगता है।

  • दु:खं हि मृत्युर्भूताना जीवितं च सुदुर्लभम्।[12]

प्राणियों के लिये मृत्यु दु:खदायी है और जीवन अतिदुर्लभ है।

  • ममेति च भवेन्मृत्युर्न ममेति च शाश्वतम्।[13]

ममता ही मृत्यु है उसका त्याग ही अमरता है।

  • ममता यस्य द्रव्येषु मृत्योरास्ये स वर्तते।[14]

जिसकी पदार्थों में ममता है वह मृत्यु के मुख में विद्यमान है।

  • क्षीणकर्मा नरो लोक रूपान्यत्वं नियच्छति।[15]

कर्म समाप्त होने पर मनुष्य अन्य रूप (पुनर्जन्म) धारण कर लेता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्त्रीपर्व महाभारत 7.27
  2. शांतिपर्व महाभारत 28.15
  3. शांतिपर्व महाभारत 175.24
  4. शांतिपर्व महाभारत 179.16
  5. शांतिपर्व महाभारत 251.22
  6. शांतिपर्व महाभारत 277.13
  7. शांतिपर्व महाभारत 277.14
  8. शांतिपर्व महाभारत 277.18
  9. शांतिपर्व महाभारत 298.19
  10. शांतिपर्व महाभारत 319.8
  11. अनुशासनपर्व महाभारत 116.17
  12. अनुशासनपर्व महाभारत 117.14
  13. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 13.3
  14. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 13.7
  15. आश्रमवासिकपर्व महाभारत 34.8

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