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(लेखक – श्रीव्रजमोहन जी वर्मा)
शहाबुद्दीन गोरी के समय तक भारत पर मुसलमानों के अनेक आक्रमाण हो चुके थे, परन्तु उस समय तक भारतवर्ष में उनका स्थायी अधिकार नहीं हो पाया था। मुस्लिम आक्रमणकारी उड़ती चिड़िया की भाँति, लुटेरों का टिड्डी दल लिये आते और लूट-मारकर फिर अफ़ग़ानिस्तान की पहाड़ी खोहों को लौट जाते। शहाबु्द्दीन के बाद मुसलानी राज्य स्थायी रूप से भारत में आरम्भ हुआ। बहुत से मुसलमान यहाँ बस गये, जिन्होंने भारतवर्ष के लागों को साम, दाम, दण्ड, भेद– सब उपायों से अपने धर्म में दीक्षित करने की कोशिश की। यह मुसलमान अपने साथ अपनी विदेशी इस्लामी सभ्यता और एक उग्र धर्म लेकर आये थे। पश्चिम की ओर मुंह करके नमाज पढ़ते, बात-बात में ‘शरह’ की दुहाई देते और हिन्दुओं की सभी बातों को ‘कुफ्र’ कहकर उपेक्षा की दृष्टि से देखते। मुस्लिम सभ्यता और इस्लामी धर्म को विशुद्ध बनाये रखने के लिये इतने कठोर बन्धनों के होते हुए भी भारत की सभ्यता और भारत के धर्मों ने धीरे-धीरे मुसलमानों पर अपना प्रभाव डालना आरम्भ किया और उस प्रभाव को कल्पनातीत सीमा तक पहुँचा दिया।
जब हम भगवद्भक्त मुसलमानों की संख्या पर दृष्टि डालते हैं तो आश्चर्य से स्तम्भित हो जाना पड़ता है। मुस्लिम धर्म ईश्वरवादी है। वह निराकार अल्लाह की उपासना की शिक्षा देता है। मुसलमान अपने निराकार अल्लाह की भक्ति कर सकते हैं, परन्तु उसमें प्रेम की गुंजाइश नहीं है। और हो भी कैसे सकती है ? एक तो अल्लाह निराकार है, जिसकी कल्पना साधारण मनुष्य तो क्या बड़े-बड़े पहुँचे हुओं को भी मुश्किल है। दूसरे दीनदार मुसलमान का अपने अल्लाह से सीधा नाता भी नहीं है। उसे खुदा से जो कुछ कहना-सुनना है वह सब हजरत मुहम्मद अलेउस्सलाम के द्वारा होना चाहिये। हजरत मुहम्मद ईश्वर के दूत है। परन्तु मानव हृदय प्रेम का भूखा है। वह चाहता है कि प्रेम के आवेश में वह अपने आप को किसी के ऊपर वार दे, अपने शरी और आत्मा को किसी के चरणों में अर्पण करके, उसके प्रेम में इस दु:खमय संसार की सारी सुखदा-विपदा को भूल जाय। हिन्दुओं में भगवान श्रीकृष्ण ईश्वर के अवतार अथवा स्वयं ब्रह्म हैं। वे निराकार नहीं हैं, वरं उनका अत्यन्त सुन्दर, मनमोहक आकार है, उनमें प्रेम की अनन्त मन्दाकिनी प्रवाहित है, भक्तगण उनसे साक्षात प्रेम कर सकते हैं, ईश्वर के रूप में प्रेम कर सकते हैं, सखा के रूप में प्रेम कर सकते है, और प्रेमी के रूप में प्रेम कर सकते है। वैष्णव-धर्म प्रेम का धर्म है। इन सबका स्वाभाविक फल यह हुआ कि हिन्दुओं के दुरदुराने पर भी प्रेम के भूखे सहस्त्रों मुसलमान नर-नारी कृष्ण-प्रेम में मग्न हो गये, और आज भी हैं।
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