मुरली सौं कह काम हमारौ।
अधर धरैं, सिर पर किन राखै, तुम जनि कबहुँ बिगारौ।।
जा कारन तुम जन्म भईं ब्रज, ध्यावहु नंद-दुलारौ।
बीचहिं कहूँ और सौं अँटके, तामैं कहा तुम्हारौ।।
वह मुसुकनि, वह स्याम सुभग छबि, नैननि तैं जनि टारौ।
सूरज-प्रभु ब्रजनाथ कहावत, ते तुम छिनु न बिसारौ।।1350।।