मुरली सौं अब प्रीति करौ री।
मेरी कही मानि मन राखौ, उर-रिस दूरि धरौ री।।
तुमहिं सुनीं मुरली की बातैं दीन होइ बतरानी।
काहैं न ढरैं स्याम ता ऊपर, क्यौं न होइ पटरानी।।
हम जान्यौ यह गर्व भरी है, साधु न यातैं और।
रिझै लियौ हरि कौं तप कैं बल, बृथा करो तुम सोर।।
सूर स्याम बहुनायक सजनी, यहौ मिली इक आइ।
तुम अपने जो नेम रहौगी, नेम न कर तैं जाइ।।1344।।