मुरली सौं अब प्रीति करौ री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली


मुरली सौं अब प्रीति करौ री।
मेरी कही मानि मन राखौ, उर-रिस दूरि धरौ री।।
तुमहिं सुनीं मुरली की बातैं दीन होइ बतरानी।
काहैं न ढरैं स्याम ता ऊपर, क्यौं न होइ पटरानी।।
हम जान्यौ यह गर्व भरी है, साधु न यातैं और।
रिझै लियौ हरि कौं तप कैं बल, बृथा करो तुम सोर।।
सूर स्याम बहुनायक सजनी, यहौ मिली इक आइ।
तुम अपने जो नेम रहौगी, नेम न कर तैं जाइ।।1344।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः