मुरली सबनि कौ मन हरयौ -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग केदारौ




मुरली सबनि कौ मन हरयौ।
प्रथमहिं ब्रजनारि सुनि कै आनि गिरिधर बरयौ।।
तब नही रहि गयौ हम पै सब्द स्रवननि परयौ।
पिता सुत पति बिसरी अंबर चली तजि गृह भरयौ।।
सिद्ध चारन गुनी गध्रव सुनत सब बिसरयौ।
मगन मन मारुत न डोलैं सिथिल ससि न टरयौ।।
मोर मधुप चकोर सारस सबनि यह मत करयौ।
आपनौ व्रत छाँड़ि बानी जोग-जड-व्रत धरयौ।।
निकसि सर्प न दुरत बॉबी कछु जु बसी करयौ।
तोरि तृन मृग सुरभि दसननि दाबि नाहिंन चरयौ।।
चतुर कोकिल रही चित दै कीर नैकु न मुरयौ।
ध्यान सौं धरि रहे द्रुम सब मान उर मै अरयौ।।
थके थिर चर सुर असुर नर लए धरनी धरयौ।
‘सूर’ प्रभु मुरली अधर धरी काम नाचत खरयौ।। 66 ।।

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