मुरली मोहे कुँवर कन्हाई।
अँचवति अधर-सुधा बस कीन्हे, अब हम क्हा करैं री माई।
सरबस लै हरि धरयौ सबनि कौ, औसर देति न होति अघाई।
गाजति, बाजति, चढ़ी दुहूँ कर, अपने सब्द न सुनत पराई।
जिहिं तन अनल दह्यौ अपनौ कुल, तासौं कैसैं होत भलाई।
अब सुनि सूर कौन बिधि कीजै, बन की ब्याधि माँझ घर आई।।654।।