मुरली मोहिनी अब भई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


मुरली मोहिनी अब भई।
करी जु करनि देव-दनुजनि प्रति वह बिधि फेरि ठई।।
उन पय-निधि हम व्रज-सागर मथि पाई पियुष नई।
अधर-सुधा हरि-बदन इंदु की इहिं छलि छीनि लई।।
आपु अँचै अंचबाइ सप्त सुर कीन्हे दिग बिजई।
एकहिं पुट उत अमृत सूर इत मदिरा मदन-भई।।1275।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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