मुरली नाम गुन बिपरीति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


मुरली नाम गुन बिपरीति।
खीन मुरली गहैं, मुर-अरि, रहत निसि-दिन प्रीति।।
कहत बंसी छिद्र परगट, हृदै छूछे अंग।
बिदित जग हरि अधर पीवत, करत मनसा पंग।।
चलत ते सब अचत कीन्हे, अचल चलत नगेस।
अमर आने मृत्यु लोकहिं, चलत भुव पर सेष।।
नैनहू मन मगन ऐसौ, काल गुगनि बितीत।
सूर त्रै सौं एक कीन्हे, रीझि त्रिगुन अतीत।।1225।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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