मुरली तप कियौ तनु गारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


मुरली तप कियौ तनु गारि।
नैकहुँ नहिं अंग मुरकी, जब सुलाकी जारि।।
सरद, ग्रीषम, प्रबल पावस, खरी इक पग भारि।
क‍टत हूँ नहिं अंग मोरयौ, साहसिनि अति नारि।।
रिझै लीन्हे स्याम सुंदर, देति हौ कत गारि।
सुर प्रभु तब ढरे हैं री, गुननि कीन्ही प्यारि।।1340।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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