मुरली कौन बजावै आज ।
वै अकूर कूर करनी करि, लै जु गए ब्रजराज ।।
कंस केसि मुष्टिक संहारयौ, कियौ सुरनि कौ काज ।
उग्रसेन राजा करि थापे, सबहिन के सिरताज ।।
कृष्नहिं छाँड़ि नद गृह आए, क्यौऽब जिये उन बाज ।
‘सूरज’ प्रभु विष मूरि खाइहै, यहै हमारौ साज ।। 3348 ।।