मुरली कैसैं बजै रस सानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग पूरबो


मुरली कैसैं बजै रस सानी, गरजि धुँकार अमृत बानी।।
नाद प्रवाह तरै भरै रीझै, इतनौ रस कहँ तैं जानी।।
सप्त सुरनि गति जति उपजति अति, बिपरित थावर पवन पानी।
सूरदास गिरिधर बहुनायक, याहीं सौं निसिदिन रबि मानी।।1352।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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