मुरली की सरि जनि करौ, वह तप अधिकारिनि।
एतै पर तुम बोलि हौ, कह भई बनजारिनि।।
धीर धरैं मरजाद है, नातौ लघु ह्वैहौ।
नैंकु दरस की आस है, ताहू तैं जैहौं।।
झगरैं झगरोई रहै, तिहिं कहा बड़ाई।
वह अपनौ फल भोगवै, तुम देखौ माई।।
देखौ वाके भाग कौं ताकौं न सराहौ।
सूरदास झझकीं कहा, नीकै किन चाहौ।।1343।।