मुरलिया स्याम अधर पर बैसी।
सुनहु सखी यह है तिहिं लायक, अतिहिं भली, नहिं नैसी।।
कैसैं नंद-नंदन कर धरते, जो पै होती गैसी।
तुमही वृथा कहति जोइ सोई, यह जैसी की तैसी।।
सुनहु कहा कहि-कहि मुख गावति, हृदय स्याम कैं पैसी।
सूरदास प्रभु क्यौं न मिलैं ढरि, तिहुँ भुवन जै जैसी।।1354।।