मुरलिया बाजति है बहु बान।
तीनि ग्राम, इकईस मूर्छना कोटि उनंचास तान।।
सर्व कला ब्युत्पन्न सुधर अति, या समसरि को आन।
अति सुकंठ गावति, मन भावति, रीझै स्याम सुजान।।
ऐसी सौं नहिं बैर कीजियै, दूरि करौ रिस-ज्ञान।
सूर स्याम कै अधर बिराजति, सबहीं अंग-निधान।।1353।।